Friday, May 25, 2018

जोकर के हाथों में लोकतंत्र की लूट

कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री के रूप में एच. डी. कुमारस्वामी जब शपथ ग्रहण कर रहे थे उस समय पूरे देश के सभी गैर-मोदी दलों के नेता वहां एकत्र हुए थे। मंच पर ही एक दूसरे का हाथ थाम कर इन सब लोगों ने अपने एक होने का संकेत उनके समर्थकों को दिया। उस दृश्य ने बता दिया, कि पिछले 4 वर्षों से केंद्र तथा देश के अधिकांश राज्यों में जिस प्रकार से भाजपा का रोड रोलर चल रहा है उसका जोरदार जवाब देने की तैयारी विरोधियों ने की है।


इस शपथग्रहण समारोह में पांच राज्यों के मुख्यमंत्री उपस्थित थे। पश्चिम बंगाल में मुहर्रम के लिए दुर्गा पूजा पर पाबंदी लगानेवाली ममता बैनर्जी, आंध्र प्रदेश में तिरुपति देवस्थान पर ईसाई महिला की नियुक्ति करनेवाले चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना में मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए जिद पर अड़े हुए के. चंद्रशेखर राव, केरल में दूसरा अरबस्थान बनाने के लिए लालायित पिनराई विजयन और दिल्ली में नौटंकी को संस्थात्मक दर्जा दिलानेवाले अरविंद केजरीवाल ने इस मंच को चार चांद लगाए। चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव इनमें कितनी पटती है, यह सबको पता है लेकिन वे वहां हाजिर थे। इतना ही नहीं एक दूसरे के खून के प्यासे अखिलेश यादव और मायावती भी वहां हाजिर थे। अरविंद केजरीवाल को मानो तक सभी दलों ने जैसे अपने कुनबे से बाहर रखा था और उन्होंने भी भ्रष्टाचार निर्मूलन के पुरोधा के रूप में खुद को महिमामंडित किया था। लालू प्रसाद यादव के गले मिलकर भी उनका भ्रष्टाचार का पाखंड बदस्तूर जारी था। किसी समय कांग्रेस को जी भर कर कोसनेवाला यह भ्रष्टाचारविरोधी वीर वहां कांग्रेस की पंक्ति में बैठा था।


इस समारोह में जिन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़कर कांग्रेस का हाथ मजबूत करने का बीड़ा उठाया उन सब नेताओं के पास मिलकर आज की घड़ी में लोकसभा की 265 सीटें हैं। फिर भी इनमें महाराष्ट्र की शिवसेना नहीं थी। यह दीगर बात है, कि यह जमावड़ा एक दूसरे की कितनी मदद करता है, इसको लेकर आशंकाएं बरकरार है। इन्हें देखकर भाजपा नेताओं के माथे की रेखाएं बढ़ गई होगी इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। भाजप से नाराज रहे लोगों को अच्छा लगे इसलिए ये दोनों कुछ दिन के लिए चेहरे पर चिंता लेकर घूमेंगे भी।


भाजपा के विरोध में इस अभियान का शंखनाद करने के लिए सेकुलरों को कुमार स्वामी के राज्याभिषेक से बेहतर मुहूरत नहीं मिल सकता था। एक ओर पूर्ण बहुमत ना मिलने का मलाल भाजपा को सता रहा हो, बहुमत ना मिलने के कारण पद छोड़ने की आफत येदियुरप्पा पर आई हो, मोदी शाह के हाथों से लोकतंत्र की इज्जत बचा सके ऐसा रिसॉर्ट विरोधियों को हाल ही में मिला हो - संक्षिप्त में कहे तो भाजपा के
सारे घाव हरे हो ऐसे समय में यह शंखनाद किया गया।


पर इन सब लोगों को एकत्र लानेवाला शख्स कौन है? वह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। सन 2014 के लोकसभा और उसके बाद के लगभग हर चुनाव में एक बात दिख चुकी है माहौल चाहे जैसा भी हो, एक बार मोदी के मैदान में उतरते ही सारा दृश्य बदल जाता है। कर्नाटक में भी भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिली लेकिन इनमें से अधिकांश सीटें मोदी के करिश्मे का नतीजा है। पार्टी के किसी भी अन्य नेताओं को मतदान से संवाद साधने में सफलता नहीं मिली। येदियुरप्पा प्रभावशाली नेता जरूर है लेकिन भाजपा को अकेले के बूते सत्ता तक ले जाने की ताकत उनमें नहीं है यह फिर एक बार फिर साबित हो गया। कर्नाटक में मोदी अकेले भाजपा को 100 के पार ले गए यह बात भाजपा के लिए वास्तव में चिंता की बात है।


अगले एक वर्ष में लोकसभा का चुनाव है और भाजपा के अलावा बाकी सारे दलों का एक ही मलाल है, कि उनके पास मोदी नहीं है! सीधे जनता से बात करने वाला और उनके मत खींचने वाला चेहरा उनके पास नहीं है। फिर अपने अस्तित्व की आशंका से भयभीत विरोधियों के मन में एक बात ने पैठ जमा ली है, कि मोदी और भाजपा को टक्कर देने हो तो सभी भाजपा विरोधी दलों को एकत्र आना ही होगा। फुलपुर आदि उपचुनावों के नतीजों ने उनके मुगालते को और हवा दी है, हालांकि बड़े चुनावों के नतीजे कुछ और ही कहते हैं।


मजे की बात यह, कि जिस कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण के लिए ये लोग इकट्ठा हुए थे वह कहां एकत्रित विरोधियों के दम पर चुनकर आए थे। कर्नाटक में कांग्रेस और जीडीएस ने चुनाव सिर्फ अलग-अलग नहीं लढ़ा, बल्कि एक दूसरे पर आग उगलते हुए लड़ा था। लेकिन मतदाताओं का जनादेश खंडित रूप से आया और हताश कांग्रेस ने उत्साहित जीडीएस को तश्तरी में रखकर सत्ता सौंप दी।


विधान सौध के सीढ़ियों पर बने मंच पर आसीन इन नेताओं के मन में क्या विचार आते होंगे? पिछले तीन दशकों से देश की राजनीति कितनी अच्छी चल रही थी? प्रादेशिक दलों का जोर बढ़ रहा था, जिसके पास 5-10 विधायक या 15-20 सांसद हो वह नेता भी राज्य के मुख्यमंत्री या केंद्र में प्रधानमंत्री को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता था! सिर्फ अपनी जाति की गठरी संभलने की बात थी! कईयों के पोतो-पड़पोतों का का भी इंतज़ाम हो जाता था! कोई जेल में जाते समय अपनी बीवी को मुख्यमंत्री करता था, कोई रातोंरात इस दल से उस दल में जाता था या स्वाभिमान का दम देकर मंत्री पद हासिल करता था। इस पूरे तंत्र पर एक प्रहार किया मोदी नाम के व्यक्ति ने। दुष्ट व्यक्ति के विरोध में एकत्र आना ही होगा। लोकतंत्र बचाना ही होगा। मोदी नामक राक्षस को हराना ही है, ऐसा निश्चय उन्होंने किया होगा।


बैटमैन सीरीज की फिल्मों में से एक 'डार्क नाइट राइज़ेस' में आरंभ का एक दृश्य है। विलेन जोकर कई लोगों को साथ में लेकर बैंक पर डकैती डालने जाता है। उस समय सभी लोग जोकर के मुखोटे पहने हुए ही होते हैं। बैंक में प्रवेश करने के बाद ये लोग पहले वहां के लोगों को और कर्मचारियों को गोलियों से भूनते हैं। बाद में जैसे-जैसे रकम हाथ में आने लगती है वैसे वैसे ये सारे जोकर एक दूसरे को मारने लगते हैं। सबसे आखिर में पूरी रकम हाथ में हथियाने वाला जोकर (हीथ लेजर) हाथ आई लूट को लेकर भाग जाता है।



भारतीय लोकतंत्र की लूट ऐसे किसी जोकर के हाथ में ना पड़े तो गनीमत है।

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