सरकार से निकलते हुए भी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में बने रहने की घोषणा करते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू ने कहानी में ट्वीस्ट लाया है। भारतीय जनता पार्टी की एक दिशा में बढ़ती हुई यात्रा में उन्होंने एक मोड़ लाया है।
यह सर्वविदीत है, कि पिछले कई दिनों से भाजपा और तेलुगू देशम के बीच रिश्तों में खटास आई थी। एनडीए से बाहर निकलने की चंद्राबाबू गाहे-बगाहे कई बार घोषणा कर चुके थे। जनवरी में उन्होंने कहा था, ‘गठबंधन धर्म के कारण हम चुप हैं। यदि वे हमें नहीं चाहते तो हम नमस्कारम कह देंगे और अपनी राह पर निकल पड़ेंगे।’लेकिन उस पर पहल अभी तक नहीं हुई थी। बुधवार की रात 10 बजे के बाद उस पर अधिकारिक मुहर भी लग गई।
“मैंने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से 29 बार मुलाकात की लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया। जिस तरह से वे बात कर रहे हैं और कह रहे है, कि ‘हम इतना ही दे सकते है’ वह राज्य का अपमान है,” नायडू ने ताजा संवाददाता सम्मेलन में कहा।
हालांकि यह एक रटरटाया बयान है जिसका अभ्यास उनकी पार्टी वर्षों से कर रही है। तेलुगू आत्म-सम्मान का नारा तेदेपा के लिए एक सुपरीक्षित अस्त्र है जिसका प्रयोग कई बार किया गया है और वह भी सफलता के साथ। आखिर वह दिल्ली द्वारा आंध्र का अपमान किए जाने की दुहाई ही तो थी, जिसे देकर एन. टी. रामाराव हैद्राबाद की सत्ता पर आसीन हुए थे। इसी आघोष के साथ उन्होंने तेदेपा को जन्म दिया और सत्ता भी प्राप्त की। आज उसी जुमले को उछालकर चंद्राबाबू ने 1982-83 के चरित्र को दुहराने की कोशिश की है। फर्क इतना है, कि तब सत्ता में कांग्रेस थी और आज भाजपा है।
आंध्र प्रदेश और केंद्र के बीच विवाद का केवल एक कारण है और वह है एक शब्द : विशेष। इसका कारण है, कि आंध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना बनाते समय लोकसभा में बहस के दौरान तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा की थी, कि नए आंध्र को वित्तीय समस्या के उबरने के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा (एससीएस) दिया जाएगा। मनमोहन सिंह ने यह घोषणा 5 वर्षों के लिए की थी, जबकि भाजपा ने सत्ता पाने की जद्दोजहद में 2014 में यह विशेष दर्जा एक दशक तक देने का वादा किया था। भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाले तेलुगु देसम के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात क्या हो सकती थी?
मगर आंध्र प्रदेश को विशिष्ट राज्य का दर्जा देने में मोदी मदद करेंगे, इसकी उम्मीद लगाए बैठे चंद्राबाबू के हाथ निराशा ही लगी थी। दोनों दलों के बीच अंतर इतना बढ़ गया, कि आखिर नायडू ने कहा, कि वे अपमानित महसूस कर रहे है।
आज एससीएस की स्थिति यह है, कि राजकीय क्षितिज पर उसकी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। भाजपा ने आंध्र को विशेष राज्य तो दूर, आम राज्यों की कतार में एक और राज्य से अधिक कुछ नहीं बनाया है। इसके लिए केंद्र ने 14 वें वित्त आयोग की सिफारिश को ढाल बनाया है जिसने एससीएस के खिलाफ सिफारिश की है। इसलिए विशेष वर्ग के नाम को छोड़कर उसके तहत मिलनेवाले सभी वित्तीय लाभ देने की बात केंद्र ने की है। इसका मतलब यह है, कि केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं का 90 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा और राज्य द्वारा 10 प्रतिशत। आम तौर पर कुछ परियोजनाओं के खर्च का 60 प्रतिशत हिस्सा केंद्र द्वारा और 40 प्रतिशत राज्य द्वारा दिया जाता है।
केंद्र की इस पेशकश को चंद्राबाबू ने हामी भरी थी, क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई चारा भी नहीं था। वास्तविकता यह है, कि चंद्राबाबू मोदी से ऐसा कुछ उगलवा नहीं पा रहे थे जैसा 1998-2004 के दौरान वे अटलबिहारी वाजपेयी से उगलवाते थे।
अब सवाल यह है, कि क्या तेदेपा का सरकार से बाहर निकलने से आंध्र का कुछ भला होगा? इसका उत्तर है, नहीं। खासकर तब अगर भाजपा 2019 में सत्ता में लौट आ जाए। दूसरी तरफ भाजपा और वाईएसआर कांग्रेस नेता जगनमोहन रेड्डी के बीच भी नजदीकियां बढ़ रही है। इसके कारण भी तेदेपा की भौंहें तन गई है। जगनमोहन रेड्डी की पिछले दिनों भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात ने इस बात को बल ही दिया है। जगनमोहन ने पहले भी कहा था और अब भी कहते है, कि अगर भाजपा आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देती है तो वो उसका समर्थन करेंगे। इसी बीच केंद्रीय जांच एजेंसियों के कई केस जगन पर चल रहे हैं। इन पचड़ों से खुद को बचाए रखने के लिए जगन भाजपा से हाथ मिलान चाहते हैं।
इसलिए भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलकर चंद्राबाबू शहीद बनना चाहते है। यह चंद्राबाबू का एक हथकंडा है जो एक तरह से भाजपा के खिलाफ नूरा कुश्ती है। राज्य में अपनी साख बचाने के लिए खेली गई यह चाल है। भाजपा को खलनायक बनाकर वे नायक बनना चाहते है जिससे आंध्र की सत्ता में उनका पुनरागमन सुकर हो। ऐसा हुआ, तो भाजपा और तेदेपा फिर से एक थाली में खाते हुए दिख सकते है।
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